
IPL में कोच की बढ़ती भूमिका: कप्तानी की कमी के बीच रणनीतिक दिग्गजों का बढ़ता दबदबा
आईपीएल के 18 सालों में एक अहम बदलाव देखने को मिला है, और वह है कोचों की बढ़ती भूमिका। पहले आईपीएल में जहां कप्तान अपनी रणनीति और नेतृत्व से टीम को दिशा देते थे, अब वह समय आ गया है जब कोचों की भूमिका और ताकत बढ़ गई है। इस बदलाव का मुख्य कारण है कप्तानों की सीमित संख्या और कोचों की बढ़ती रणनीतिक ताकत।
कप्तानों की कमी और कोचों की बढ़ती भूमिका
आईपीएल के पहले सीजन में खिलाड़ियों के साथ-साथ कप्तान भी अपने अनुभव और नेतृत्व से टीम को एक नई दिशा देते थे। हालांकि, पिछले कुछ सालों में यह देखा गया है कि प्रमुख कप्तान जैसे महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली, रोहित शर्मा और फाफ डु प्लेसिस का स्थान अब नए चेहरे ले रहे हैं। इसमें से केवल हार्दिक पांड्या और श्रेयर अय्यर जैसे कप्तान ही ऐसे हैं जिन्होंने आईपीएल में चैंपियन बनने का अनुभव हासिल किया है। इसके कारण टीमों ने अब अपने कोचों की ओर रुख किया है, जो अब टीम की रणनीति और प्रदर्शन में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
कोचों का बढ़ता प्रभाव
पंजाब किंग्स और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर जैसे फ्रेंचाइजी अब एक मजबूत रणनीतिक कोच की तलाश कर रहे हैं। इन टीमों ने यह समझ लिया है कि एक मजबूत कोच ही टीम को जीत दिला सकता है। उदाहरण के तौर पर, आरसीबी ने एंडी फ्लावर को अपना मुख्य कोच बनाया है, जो पहले इंग्लैंड की कोचिंग कर चुके थे। फ्लावर ने आईपीएल, सीपीएल, पीएसएल और अन्य टूर्नामेंट्स में कई ट्रॉफियां जीती हैं। इसके अलावा, अशोक नेहरा, चंद्रकांत पंडित, रिकी पोंटिंग जैसे कोचों ने भी अपनी रणनीतिक सोच से टीमों को नई दिशा दी है। ये कोच अब सीमाओं से बाहर जाकर टीम के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए रणनीति बनाते हैं।
कोच और कप्तान के बीच संतुलन
माइक हेसन, जो पंजाब किंग्स और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के पूर्व कोच रहे हैं, का मानना है कि कोच की भूमिका बढ़ी है लेकिन इस बढ़ती भूमिका को सही तरीके से निभाना महत्वपूर्ण है। हेसन का कहना है कि एक कोच का काम केवल मैदान के बाहर रणनीति बनाना नहीं होता, बल्कि खिलाड़ियों के साथ काम करना भी होता है ताकि वे आत्मविश्वास से भरे और सही निर्णय लेने के लिए तैयार रहें। इसके साथ ही, वह यह भी मानते हैं कि कोच को कभी भी कप्तान से अधिक महत्वपूर्ण नहीं बनना चाहिए।
आईपीएल में कोचों की ताकत और बदलाव
आईपीएल में टीमों ने अब कोचों से एक बेहतर रणनीति और मार्गदर्शन की उम्मीदें रखनी शुरू कर दी हैं। पहले जहां कप्तान को सारा श्रेय मिलता था, अब कोचों का नाम भी सामने आ रहा है। इसके साथ ही यह भी देखा गया है कि कुछ सफल सीजन के बाद कोच को ही अधिक श्रेय मिलता है। पिछले साल शर्यस अय्यर ने आईपीएल जीतने के बाद महसूस किया कि उन्हें उतना श्रेय नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था, क्योंकि गौतम गंभीर ने बतौर मेंटर सभी की नजरें अपनी ओर खींची थीं।
टीम और कोच के बीच के रिश्ते
टीमों के साथ कोच का रिश्ता भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक अच्छा कोच टीम के खिलाड़ियों से संपर्क करता है और उन्हें खेल की मानसिकता और रणनीति समझाता है। कोच का काम केवल रणनीति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह टीम के साथ मिलकर जीतने की भावना पैदा करते हैं।
आईपीएल में कोचों का काम केवल मैदान पर नहीं, बल्कि बाहर भी चलता है। कई बार कोच टीम के लिए आंतरिक रणनीतियों पर काम करते हैं, ताकि खिलाड़ी आत्मविश्वास के साथ मैदान पर उतरें। यही कारण है कि कोचों की भूमिका अब पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है।
नए कोचों के आने की आवश्यकता
अब, आईपीएल के बड़े फ्रेंचाइजी भी यह समझने लगे हैं कि अपने कोच के चयन में मजबूती लानी चाहिए। दिल्ली कैपिटल्स, पंजाब किंग्स, और लखनऊ सुपर जायंट्स जैसे फ्रेंचाइजी ने यह महसूस किया है कि उन्हें अब एक मजबूत कोच की जरूरत है, जो टीम को सही दिशा दिखा सके। टीमों के पास अनुभवी कप्तान हो सकते हैं, लेकिन कोच का योगदान अब उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है।
निष्कर्ष
आईपीएल के इस 18वें साल में कोचों की भूमिका बहुत ज्यादा अहम हो गई है। अब टीमों को केवल कप्तान की जरूरत नहीं है, बल्कि वे एक ऐसे कोच की तलाश कर रही हैं, जो टीम के लिए रणनीतिक दिशा तय कर सके। आईपीएल अब एक नए युग में प्रवेश कर चुका है, जहां कोच मैदान पर सिर्फ एक सलाहकार नहीं, बल्कि टीम की मुख्य रणनीतिक ताकत के रूप में उभर रहे हैं।